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आवारा बादल

4 . विद्यालय जीवन  

रवि और विनोद डिनर लेकर विनोद के कमरे में आ गये । उनके साथ साथ मृदुला भी आने लगी तो रवि ने उसे टोक दिया "अरे उधर कहाँ जा रही हो मैडम, दाल भात में मूसलचंद बनने ? दो बचपन के यार इतने साल बाद मिले हैं तो उन्हें गपशप करने दीजिए । थोड़ा बचपने में जीने दीजिए उन्हें । आज तो हम दोनों यार जी भरकर गप्पें हांकेंगे । भई, आज हमें रोकना टोकना मत, हां "। रवि ने शरारत से कहा 

"हां हां , तो मैं कौन सा दाल भात में मूसल चंद बन रही हूँ । मैं कौन सा रोक रही हूं आपको । खूब करो गपशप आप लोग । ऐसे अवसर जीवन में आते ही कितने हैं ? आप और आपके दोस्त के बीच में मैं कबाब में हड्डी नहीं बनने वाली हूं ।  मैं तो चली काम निबटाने । कुछ जरूरत हो तो रामू काका को आवाज दे लेना । बच्चों को भी तो देखना है मुझे अभी" ? और मृदुला चुपके से खिसक ली वहां से । 

रवि और विनोद दोनों दोस्त सोफे पर पसर गये । अचानक रवि को याद आया कि विनोद के यहां आने का कारण तो पूछा ही नहीं ? कितनी देर से बकबक किये जा रहा है वह मगर काम की बातें याद ही नहीं आई उसे । बड़ा भुलक्कड़ हो गया है वह । फिर उसने विनोद से यहां आने का कारण पूछा और यह भी पूछा कि उसका पता उसे कहाँ से मिला ? 

"इतने बड़े आदमी का पता मालूम करना कोई कठिन काम है क्या ? गांव में हर किसी से पूछ लो । सब जानते हैं आपको । आखिर पूरे गांव की शान हैं आप । बस, ऐसे ही मिल गया आपका पता" ।
"तो फिर अब वह बात बताओ जिसके लिये तुम इतने सालों के बाद इतनी दूर चलकर मेरे पास आये हो । बताओ , ऐसी क्या बात है" ? रवि ने उसकी आंखों में झांककर पूछा 

विनोद इस बात पर एकदम से खामोश हो गया । चेहरा झुका लिया था उसने अपना । संकोच के कारण वह कुछ कह नहीं पा रहा था । उसके मन में द्वंद्व का सागर लहरा रहा था । कहे या ना कहे । एक मन कहता कह दे तो दूसरा कहता क्या यह ठीक होगा ? उसके मन में सागर की तरह  एक लहर आती और उसकी  जुबां खुलने लगती लेकिन इतने में ही एक दूसरी लहर आकर उसके मुंह पर ताला जड़ जाती थी । वह किनारे पर खड़ा का खड़ा ही रह जाता था । ना इधर जा सकता था और ना उधर । किंकर्तव्य की स्थिति में था वह । 

उसे असमंजस में देखकर रवि उसके पास आ गया और उसका हाथ अपने हाथों में थामकर कहने लगा "एक बात बता विनोद , ऐसी क्या बात है जिसे कहने में इतनी हिचकिचाहट हो रही है तुझे ? जिस बात को कहने के लिए तू इतनी दूर आ गया फिर उसे कहने से हिचक क्यों रहा है तू ? या तो तुझे मुझ पर यकीन नहीं है कि मैं वह काम कर पाऊंगा या नहीं या फिर मुझसे कुछ छिपा रहे हो तुम । बताओ ना आखिर बात है क्या" ? रवि ने चिंतित होते हुए पूछा । 

"समझ में नहीं आ रहा है कि बात कहां से शुरू करूँ ? मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मुझे यहां इतना मान सम्मान मिलेगा । आज के जमाने में कौन याद रखता है अपने पुराने दोस्तों को ? सब मतलब के साथी होते हैं । आपकी सरलता, निष्कपटता और मासूमियत ने मुझे मालामाल कर दिया है । अब डर लग रहा है कि अगर मैं कोई काम बता दूं तो मैं कहीँ अपनी नजरों में ही ना गिर जाऊं  । बस, इसी उहापोह में फंसा हुआ हूँ" । विनोद ने अपनी उलझन सामने रख दी । 

"अबे साले, तू बताता है या फिर मैं तेरा क्रिया कर्म करने की तैयारी शुरू करूँ" ? यह रवि का पेट डॉयलॉग था । अब विनोद की सारी हिचकिचाहट, संशय , डर सब काफूर हो गये थे । जैसे उसमें एक नयी जान आ गयी हो । उसके मुंह पर भी एक अजीब सी चमक आ गयी थी । उसने पूछा " तुम बेला को जानते हो " ? 
रवि एकदम से चौंका । "कौन बेला" ? 
विनोद को जैसे पता था कि रवि यही कहेगा इसलिए वह कहने लगा "वही बेला जो अपने साथ स्कूल में पढती थी" । 

रवि अपने दिमाग पर जोर डालने लगा मगर उसे कुछ याद नहीं आ रहा था । उसकी यह हालत देखकर विनोद बोला " भूल गये ? अरे , वही दो चोटी वाली लड़की" ? 
रवि को अभी भी कुछ याद नहीं आ रहा था इसलिए वह मन ही मन झुंझला रहा था । विनोद उसकी इस दशा पर चकरा रहा था । आखिर में उसने अचूक बाण चलाया । "अरे, उस दो ऐंटीना वाली लड़की को भूल गये क्या जिसने एक दिन हंगामा मचा दिया था" ? 
"ओह माई गॉड ! अच्छा वह लड़की ? अरे, उसे कैसे भूल सकता हूँ भला ? उसने मुझे कितनी तकलीफ पहुंचाई है , ये बात मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ" । बेला का नाम याद आते ही रवि का चेहरा एकदम से कठोर हो गया था । 
"बस, मैं इसी बात से हिचकिचा रहा था कि पता नहीं तुम बेला के नाम से कैसे रिएक्ट करोगे ? उसका नाम आते ही पता नहीं तुम क्या कर दोगे ? इतने सालों तक उसके प्रति आपके मन में जो कुछ भरा होगा  कहीं वह तूफान बन कर सब कुछ तहस नहस नहीं कर दे ?बस इसी आशंका के बादल छाये हुये थे मेरे मन में" । विनोद ने बड़ी उदासी के साथ कहा । 

थोड़ी देर तक कमरे में खामोशी बिछी रही । दोनों ही दोस्त अपनी पुरानी यादों में खो गए थे । किस तरह सब बच्चे साथ साथ खेलते कूदते थे । लड़के लड़कियों में कोई भेद नहीं था तब । "अमृत - विष" , छुप्पम छुपाई , लंगड़ी टांग , कोड़ा चमार साई पीछे देखे मार खाई , रुमाल झपट्टा, मारधड़ी को मीठो खेल, खो खो, कबड्डी, पंजा लड़ाई , सतोलिया, कंचे, गुट्टे सब खेल साथ साथ खेलते थे वे सब । कुछ खेल यद्यपि लड़कियों के ही थे जैसे गुट्टे, लेकिन कुछ लड़के भी खेल लेते थे गुट्टे । खेल खेल में सब बच्चे लड़ते भी खूब थे लेकिन फिर तुरंत एक भी हो जाते थे । यही तो खासियत है बचपन की । स्थाई दुश्मनी नहीं होती है बचपन में । 

बेला बहुत तेज तर्रार लड़की थी । उसके पिता पी डब्ल्यू डी विभाग में JEN थे । खूब गोरी चिट्टी थी बेला । उसके फूले फूले गाल रूई के गोले से लगते थे । बड़ी बड़ी आंखें मासूमियत से भरी रहती थी । लंबे काले घने बाल कमर से भी नीचे आते थे उसके । एक चोटी से तो काम ही नहीं चलता था उसका । इसलिए उसकी मम्मी दो चोटियां बनाती थी उसकी । एक बार खेल खेल में एक लड़की से उसकी लड़ाई हो गई थी । उस लड़की ने झट से उसके बाल कसकर पकड़ लिये और जोर से खींच लिए । बेला दर्द से कराह उठी थी तब । उसकी बड़ी बड़ी आंखों से आंसू बहने लगे थे । बस, उसने उस दिन ठान लिया था कि ये बाल उसकी जान के दुश्मन हैं । अगले ही दिन उसने वो बाल कटवा दिये थे । कैसा लगा होगा उसके मम्मी पापा को जब उसके सुंदर घने काले बालों की शवयात्रा निकली होगी ? कलेजा मुंह को आ गया होगा उनका । मगर बेला की जिद के आगे लाचार हो गये होंगे वे । तभी तो इतने प्यारे बाल कटवाने पड़े थे उन्हें । पर इससे एक बात सिद्ध हो गई थी कि बेला बहुत जिद्दी लड़की थी । अपनी बात मनवा कर ही छोड़ती थी । 
रवि कक्षा में सबसे होशियार छात्र था । हालांकि शैतानी भी बहुत करता था । घर पर तो पढ़ता ही नहीं था फिर भी कक्षा में हर साल प्रथम वही आता था । बेला लाख कोशिश करने के बाद भी दूसरे स्थान पर आती थी । इसी बात से वह चिढ़ती थी उससे । वह प्रथम आना चाहती थी मगर रवि उसकी राह रोके खड़ा हुआ था । विनोद का तो पढ़ाई लिखाई से दूर दूर तक वास्ता था ही नहीं । मटरगश्ती करने के लिए ही आता था वह स्कूल ।  बस जैसे तैसे पास हो जाया करता था । रवि और बेला में कक्षा में सवाल पहले हल करके दिखाने की होड़ लगी रहती थी । पर अक्सर रवि ही जीतता था तब ।

बेला चूंकि रवि से मन ही मन ईर्ष्या रखती थी इसलिए उसे रवि को अपमानित करने में बड़ा मजा आता था । कक्षा में तो वह आगे निकल नहीं पाती थी तो उसका बदला ऐसे ही लेती थी वह । अगर गलती से भी रवि का कोई भी अंग बेला से छू जाये तो वह इतने जोर से चीखती थी जैसे उसे रवि ने कितनी तेज मारा है । टसुए बहाने में उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था स्कूल में । उसके रोने की आवाज सुनकर गुरुजी दौड़े दौड़े आते थे और रवि को खूब उल्टा सीधा सुनाते थे । कभी कभी तो मारते भी थे वे । वो भी बुरी तरह । बेचारा रवि , निर्दोष होते हुये भी अपराधी सा महसूस करता था । रवि की ऐसी हालत देखकर बेला को असीम आनंद मिलता था । बेला की इन हरकतों के कारण रवि बेला से दूर दूर ही रहने की कोशिश करता था । दूसरी लड़कियां भी रवि से बेला की बुराई करती रहती थी । दूसरी लड़कियों के बीच रवि कन्हैया की तरह लगता था । इससे बेला और भी चिढ़ जाती थी । वह चाहती थी कि रवि उसके आसपास रहे मगर रवि उससे दूर दूर भागता था । 

समय ऐसे ही गुजरता रहा । दिन पंछी बनकर उड़ते रहे । लड़ाई, पढ़ाई , पिटाई, खिलाई सब साथ साथ चलते रहे । कभी कुट्टी तो कभी अब्बा । कभी रूंसना तो कभी मनाना । कभी मान कभी अपमान । यही चलता रहता था । विनोद रवि रूपी राम का हनुमान था । रवि की हर बात मानता था विनोद । दोनों एक साथ एक ही जगह पर बैठते थे , आगे की पंक्ति में । बांयी ओर लड़के तथा दांयी ओर लड़कियां बैठती थीं कक्षा में । बीच में आने जाने के लिए रास्ता होता था । दरी पट्टियां होती थी बैठने के लिए । एक बस्ता होता था । एक स्लेट और उस पर लिखने के लिये कच्ची खड़ी । कभी कभी किताब , स्लेट को लेकर भी लड़ाई हो जाती थी बच्चों में आपस में । तब दूसरे बच्चे बीच बचाव करते थे ।  विद्यालय जीवन शायद ऐसा ही होता है । 






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7 Comments

Chetna swrnkar

30-Jul-2022 10:46 PM

Nice

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fiza Tanvi

15-Jan-2022 11:49 AM

Good

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Shalu

10-Jan-2022 09:19 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

10-Jan-2022 10:10 PM

धन्यवाद जी

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